Saturday 19 July 2014

Prerna Ki Talaash Mein

महीने बीत गए, और मैं कोई अच्छी कविता लिखने में असफल रहा हूँ। एक समय ऐसा था जब मैं चलते-फिरते, क्लास में बैठे-बैठे ही सुन्दर कविताएँ सोच लेता था।  कुछ कविताओं को तो बहुत प्रशंसा भी मिली। कई दिन से प्रयास कर रहा हूँ कि फिरसे लिखूं ऐसी ही कोई कविता। जो चंद पंक्तियाँ मैंने लिखी भी हैं,  वे मुझे बेजान तुकबन्दियाँ-सी प्रतीत होती है।

शायद कविताएँ 'ओन - डिमांड' नहीं लिखी जा सकती। जब तक कुछ ऐसा न हो जिससे भीतर भाव उत्पन्न हों, नीरस शब्द ही कुरेदे जा सकते हैं। हर रचना को एक प्रेरणा स्त्रोत चाहिए , हर कविता को एक केंद्र बिंदु चाहिए - ऐसा जान पड़ता है। आशा यही है की यह स्त्रोत जल्द ही मिलेगा और फ़ट से मन में से एक कविता फूटेगी - हिंदी में हो चाहे अंग्रेज़ी में।

'चश्मेवाली' एक सुन्दर कल्पना थी। कल्पना होते हुए भी वह प्रेरणा का एक शक्तिशाली एवं अमूल्य स्त्रोत थी। इसी तरह स्कूल से समय हिमाचल की पहाड़ियां कविताओं के लिए एक सुन्दर केंद्र बिंदु था। पर हर भाव का अपना समय होता है और इन स्त्रोतों का समय अब बीत चुका  है।

मन में आशा है कि फिर मन में सुन्दर कविताओं की धारा बहेगी, और पुनः मैं अपने मित्रों एवं शुभचिंतकों को अपनी रचनाओं से मोहित कर पाउँगा।


(बहुत  विलंब  के बाद हिंदी में  लिखके  दिल को बड़ा ही सुकून मिल रहा है।  ऐसा लग रहा है जैसे  बचपन के दोस्त से मिल रहा हूँ , सालों बाद !)